पति पत्नी की नोंक झोंक कविता

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खट-पट रहती हम दोंनों में शायद ही पटती थी।
मैं कहता पूरब की तो वह पश्चिम को चलती थीं॥
हुआ अचम्भा मुझे एक दिन बैठीं मेरे पास।
प्यार से बोलीं सुनो पिया जी मेरे दिल की बात॥
खोज लिया है अब तो मैंने एक अनोखा यंत्र।
पंगा लिया किसी ने तो मैं कर दूंगी विध्वंस॥
पास सभी के रहता लेकिन करते नहीं प्रयोग।
मैंने करना सीख लिया है इसका सदुपयोग॥
इतना तेज कि पलक झपकते हाजिर हो जाता है।
कहाँ छुपा रखती हूँ कोई समझ नहीं पाता है॥
साउण्ड सिस्टम बड़े गजब का म्यूट भी हो जाता है।
फुल वॉल्यूम करो तो शेर भी गीदड़ बन जाता है॥
क्या-क्या करूं बखान इसे तुम रामबाण ही जानो।
जितनी भी तारीफ करूं मैं उतना ही कम मानो॥
हरदम रखूं पास न जाने कब पड़ जाऐ काम।
मिनटों में ही कर देता दुश्मन का काम तमाम॥

बड़े काम की चीज लगा सोचा मैं भी न डरूंगा।
मेरे भी कई दुश्मन हैं मैं भी उनको देखूंगा॥
बोला हे गुरूदेवी अपना चेला मुझे बनालो।
गुरूमंत्र दे दो और इसका स्तेमाल सिखादो॥
तिरछी नजर करी और बोलीं कान इधर को करलो।
गुण तो सारे जान लिए अब चेतावनी भी सुन लो॥
मैं तो हूँ होशियार तुम कभी कोशिश भी मत करना।
उल्टा अगर चल गया तो फिर मुझे दोष मत देना॥
इतना कहकर चुप्पी साधी करी न मुझसे बात।
मैं डर के मारे नहीं बोला किस्सा हुआ समाप्त॥

गुजरा वक्त एक दिन बीबी ने ऐसे फरमाया।
पीहर जाने का मन है सावन का महीना आया॥
नई-नवेली जाती हैं मैं बोला मत इतराओ।
कुछ तो शर्म करो देवी तुम दो बच्चों की माँ हो॥
अन्नपूर्णा रसोई देवी थोड़ा तरस तो खाओ।
रोटी कौन बनायेगा इतना ही मुझे बताओ॥
खुद ही बनाकर खाना बोलीं महीने में आऊंगी।
हो जाना परफैक्ट लौटकर तुमसे बनवाऊंगी॥
शामत आई देख मैं बोला कभी नहीं मानूंगा।
हाथ जोड़ लो नाक रगड़ लो पर जाने नहीं दूंगा॥

इतना सुन देवीजी ने ललकारा ऐसे मुझको।
कहा था पंगा मत लेना अब ले लिया है तो भुगतो॥
तमतमा गया चेहरा आंखें सुर्ख हो गयीं लाल।
वही खास हथियार किया मुझ पर ही स्तेमाल॥
मैंने देखा ज्यों ही उसका हुलिया रंग और रूप।
डर के मारे आधा रह गया उड़ी प्यास और भूख॥
फिर जो सुनी दहाड़ यंत्र की मैं ऐसा घबराया।
छोड़ दिया मैदान भागकर घर से बाहर आया॥

फिर सोचा यूँ ही डरा रहीं हैं समझा निपट अनाड़ी।
मैं भी खेला-खाया था कोई कच्चा नहीं खिलाड़ी॥
हिम्मत कर फिर भीतर आया ज्यों ही किबाड़ खोली।
बैठी थी वह ताक में झट से चला दी पहली गोली॥
सही निशाना लगा एक में हालत मेरी पतली।
क्या अचूक हथियार था और गोली भी बिल्कुल असली॥
डबल हो गया हमला अब दो-दो मारी एक संग।
कर न सका मैं कुछ भी सारे शिथिल हो गये अंग॥
हाँ कर दी पीहर जाने की जहर का घूंट पिया था।
तब जाकर देवीजी ने उस यंत्र को बंद किया था॥

सावन क्या अब बारहों महीने डर-डर कर जीता हूं।
जब कहतीं पीहर जाना मैं झट हाँ कर देता हूं॥
रोना था हथियार और आँसू थे उसकी गोली।
मेरी बीबी ने खेली थी जिससे खूनी होली॥
पता नहीं इतने आंसू वो कहां छुपा लेती थीं।
पीहर की ना करो अश्रु की नदी बहा देती थीं॥
सुर कैसा था बतलाने से समझ नहीं पाओगे।
माइके मत जाने देना तब खुद ही जान जाओगे॥

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कविता सुनें : Watch the Poem मैं और मेरी जया दोनों खुशहाल एक था हमारा नटखट गोपाल चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल जान से प्यारा हमें अपना लाल तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत मैं उसको वांछित समय न दे पाता मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ लेशमात्र होती थीं आपस में बात एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब तो सवाल पर सवाल किया पापा एक बात बताएँगे आप सुबह जाते हो रात को आते हो बताओ एक दिन में कितना कमाते हो ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया खुद को असमंजस के घेरे में पाया मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो आप एक दिन में कितना कमाते हो मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ वह नहीं माना, मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला जल्दी बताओ जल्दी बताओ मैंने झिड़क दिया यह कहकर बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ देखकर मेरे तेवर, उसका अदना सा मन सहम गया मुझ

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