तोंद पर कविता

शब्द सरोवर हिंदी कविता


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चुस्त बनो सब जवानो बदला है परिवेश।
तोंद घटाओ पुलिस की ऊपर से आदेश॥
ऊपर से आदेश मोटापा दूर भगाओ।
करो नित्य व्यायाम बदन में फुर्ती लाओ॥
औसत से ज्यादा जिसका भी पेट बढ़ेगा।
लाद पीठ पर मुझको वो ही दौड़ करेगा॥

खान पान आहर पर देना होगा ध्यान।
चर्बी बढ़े न देह की सुनो लगाकर कान॥
सुनो लगाकर कान डाइटिंग कर दो चालू।
चलो हिरन की तरह नहीं जैसे थुलथुल भालू॥
घर का बना शुद्द और पौष्टिक खाना खाओ।
मुफ्त मलाई छोड़ तोंद अपनी पिचकाओ॥

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कविता सुनें : Watch the Poem मैं और मेरी जया दोनों खुशहाल एक था हमारा नटखट गोपाल चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल जान से प्यारा हमें अपना लाल तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत मैं उसको वांछित समय न दे पाता मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ लेशमात्र होती थीं आपस में बात एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब तो सवाल पर सवाल किया पापा एक बात बताएँगे आप सुबह जाते हो रात को आते हो बताओ एक दिन में कितना कमाते हो ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया खुद को असमंजस के घेरे में पाया मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो आप एक दिन में कितना कमाते हो मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ वह नहीं माना, मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला जल्दी बताओ जल्दी बताओ मैंने झिड़क दिया यह कहकर बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ देखकर मेरे तेवर, उसका अदना सा मन सहम गया मुझ

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