नारी अत्याचार पर कविता

Shabd Sarovar Hindi Poetry


कविताएं सुनें : Watch my Poetry


सरेआम इज्जत लुटी हुआ अकथ ब्यभिचार।
तब अपनी आँखें खुली मच गया हा-हाकार॥
मच गया हा-हाकार सभी दे रही दुहाई।
पुलिस और सरकार निकम्मी अपनी भाई॥
चार-दिनों तक यही ढिंढोरा हम पीटेंगे।
भूल इसे फिर उसी तर्ज पर हम जीयेंगे॥

फिर होगा कोई हादसा फिर से होगा शोर।
फिर ठंडा पड़ जायेगा जनता का आक्रोश॥
जनता का आक्रोश, मनोबल भी टूटेगा।
देख, दरिंदा फिर कोई अस्मत लूटेगा॥
जगो हुक्मरानों बहशियों को मत छोड़ो।
गढ़ो सख्त कानून हौसले इनके तोड़ो॥

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कविता सुनें : Watch the Poem मैं और मेरी जया दोनों खुशहाल एक था हमारा नटखट गोपाल चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल जान से प्यारा हमें अपना लाल तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत मैं उसको वांछित समय न दे पाता मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ लेशमात्र होती थीं आपस में बात एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब तो सवाल पर सवाल किया पापा एक बात बताएँगे आप सुबह जाते हो रात को आते हो बताओ एक दिन में कितना कमाते हो ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया खुद को असमंजस के घेरे में पाया मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो आप एक दिन में कितना कमाते हो मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ वह नहीं माना, मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला जल्दी बताओ जल्दी बताओ मैंने झिड़क दिया यह कहकर बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ देखकर मेरे तेवर, उसका अदना सा मन सहम गया मुझ

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