नारी अत्याचार पर कविता
कविताएं सुनें : Watch Poems
सरेआम इज्जत लुटी हुआ अकथ ब्यभिचार।
तब अपनी आँखें खुली मच गया हा-हाकार॥
मच गया हा-हाकार सभी दे रही दुहाई।
पुलिस और सरकार निकम्मी अपनी भाई॥
चार-दिनों तक यही ढिंढोरा हम पीटेंगे।
भूल इसे फिर उसी तर्ज पर हम जीयेंगे॥
फिर होगा कोई हादसा फिर से होगा शोर।
फिर ठंडा पड़ जायेगा जनता का आक्रोश॥
जनता का आक्रोश, मनोबल भी टूटेगा।
देख, दरिंदा फिर कोई अस्मत लूटेगा॥
जगो हुक्मरानों बहशियों को मत छोड़ो।
गढ़ो सख्त कानून हौसले इनके तोड़ो॥