मातृभूमि पर कविता
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आजादी के पावन पर्व पर माँ भारती को प्रणाम, शहीद को सादर श्रद्धांजलि तथा आप सभी को हार्दिक बधाई।
ममतामयी अनोखी जग में कोई न जिसका शानी।
सौ करोड़ संतानें फिर भी लगे रूप की रानी॥
उम्र न जाने कोई उसकी कहते बहुत बड़ी है।
लेकिन उसके चेहरे पर कोई झुर्री नहीं पड़ी है॥
कश्मीरी मुख-मंडल उसका आज भी दमक रहा है।
सिर पर धवल-श्वेत हिमगिर का जूड़ा चमक रहा है॥
हिमांचली नथिनी से उसकी नाक सुहानी लगती।
हार उत्तरांचल का अपने गले सजाए रखती॥
कानों में मतवाले कुंडल चंड़ीगढ़ पंजाब।
बल्ले-बल्ले और उनके भंगड़े का नहीं जबाब॥
हरियाणा वक्षस्थल है और दिल्ली उसका दिल है।
हरे रंग की चोली यूपी की पहचान अलग है॥
सदियों से इसमें दो पावन धारा बहती रहती।
यमुना और गंगा मैया जिन्हें सारी दुनियां कहती॥
कमर है मध्य प्रदेश करधनी महाराष्ट्र की पहने।
छत्तीसगढ़ का झब्बा चूंदर राजस्थानी ओढ़े॥
एक भुजा गुजरात में उसकी ढोल डांडिया बाजे।
दूजी है बंगाल जहाँ पर काली माता नाचे॥
मणिपुर मेघालय मीजोरम उंगली साथ निभायें।
त्रिपुरा नागालैंड पाँच मिल मुट्ठी एक बनायें॥
कर-कंगन सोहे बिहार का झारखण्ड की चूड़ी।
सिक्किम अरूणांचल आसामी चम-चम करें अंगूठी॥
दादर नगर हवेली उसका दूजा हाथ सजाते।
दमन और दिउ अरब सागर में डुबकी रोज लगाते॥
कर्नाटक आन्ध्रा टाँगों पर गोवा रूपी तिल है।
तमिलनाडु केरल पैरों में लक्ष्यद्वीप पायल है॥
पौन्डिचेरी घाघरा पहन जब नृत्य उडीसी करती।
अंडमान बंगाल की खाड़ी उसे निहारा करती॥
देख मोहिनी रूप बैरियों का मन भी ललचाया।
नथिनी खींची कभी कभी कुंडल पर दाव लगाया॥
लाज बचाने को उसने जब-जब आवाज लगायी।
एक नहीं अगणित तलवारें म्यान से बाहर आयीं॥
कोटि-कोटि हुंकार उठे माँ का जयकार किया था।
मार गिराया दुश्मन को या दूर खदेड़ दिया था॥
कितने लहूलुहान हुए पर पीठ नहीं दिखलाई।
कितनों ने अपनी जान देकर उसकी लाज बचाई॥
देख सपूतों की कुर्बानी उसका दिल भर आता।
ममतामयी जन्मभूमि वो अपनी भारत माता॥