बेटा पर कविता
मैं और मेरी जया दोनों खुशहाल
एक था हमारा नटखट गोपाल
चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल
जान से प्यारा हमें अपना लाल
तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ
अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं
उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत
और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत
मैं उसको वांछित समय न दे पाता
मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता
कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ
लेशमात्र होती थीं आपस में बात
एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया
बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया
पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब
तो सवाल पर सवाल किया
पापा एक बात बताएँगे आप
सुबह जाते हो रात को आते हो
बताओ एक दिन में कितना कमाते हो
ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया
खुद को असमंजस के घेरे में पाया
मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो
आप एक दिन में कितना कमाते हो
मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ
तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ
वह नहीं माना,
मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला
जल्दी बताओ जल्दी बताओ
मैंने झिड़क दिया यह कहकर
बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ
देखकर मेरे तेवर,
उसका अदना सा मन सहम गया
मुझे लगा वो मान गया है
या गुस्से में हूँ पहचान गया है
मैं चुप उसके कमरे से बाहर आया
पलभर बैठा सिर झटकाया
तो मन में विचार आया बता ही देता हूँ
इसके चंचल मन को शांत कर देता हूँ
उल्टे पाँव पहुंचा फिर उसके पास
सुनो बेटा बताता हूँ
मैं एक दिन मैं हजार रुपये कमाता हूँ
वह खिल उठा और तपाक से बोला
पापा आप मुझे दो सौ रुपये दे देना
और कुछ ही दिनों में वापस ले लेना
कविता सुनें
Watch the Poem
पैसों की सुनते ही मैं झुंझलाया
माथा ठनका और बौखलाया
सोचा न समझा बेहिसाब डांटा
उठा दिया हाथ मारा एक चांटा
तुम्हें अच्छा खासा जेब खर्च मिलता है
उसमें भी काम नहीं चलता है
मैं अनाप सनाप बोलकर उसे डपट रहा था
उसकी आँखों से अविरल नीर टपक रहा था
वह फूट फूट कर रोया और सुबकते हुए बोला
पापा आप जो जेबखर्च देते हैं,
सारे पैसे मैंने बचाए हैं
फिर भी मुझसे अबतक,
आठ सौ रुपये ही जमा हो पाए हैं
आप से दो सौ इसलिए मांग रहा हूँ
कि हजार पूरे करके
आपका एक दिन खरीदना चाह रहा हूँ
उस दिन आपको रखूँगा मैं अपने पास
काम पर जाने की मत करना बात
आपकी गोद मैं बैठकर खूब मस्ती करूँगा
और रात को प्यारी सी लोरी सुनूंगा
मैं अवाक् और अपलक उसे निहार रहा था
फिर बाँहों मैं भरकर पुचकार रहा था
मन ही मन खुद को दुत्कार रहा था
एक था हमारा नटखट गोपाल
चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल
जान से प्यारा हमें अपना लाल
तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ
अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं
उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत
और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत
मैं उसको वांछित समय न दे पाता
मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता
कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ
लेशमात्र होती थीं आपस में बात
एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया
बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया
पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब
तो सवाल पर सवाल किया
पापा एक बात बताएँगे आप
सुबह जाते हो रात को आते हो
बताओ एक दिन में कितना कमाते हो
ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया
खुद को असमंजस के घेरे में पाया
मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो
आप एक दिन में कितना कमाते हो
मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ
तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ
वह नहीं माना,
मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला
जल्दी बताओ जल्दी बताओ
मैंने झिड़क दिया यह कहकर
बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ
देखकर मेरे तेवर,
उसका अदना सा मन सहम गया
मुझे लगा वो मान गया है
या गुस्से में हूँ पहचान गया है
मैं चुप उसके कमरे से बाहर आया
पलभर बैठा सिर झटकाया
तो मन में विचार आया बता ही देता हूँ
इसके चंचल मन को शांत कर देता हूँ
उल्टे पाँव पहुंचा फिर उसके पास
सुनो बेटा बताता हूँ
मैं एक दिन मैं हजार रुपये कमाता हूँ
वह खिल उठा और तपाक से बोला
पापा आप मुझे दो सौ रुपये दे देना
और कुछ ही दिनों में वापस ले लेना
कविता सुनें
Watch the Poem
पैसों की सुनते ही मैं झुंझलाया
माथा ठनका और बौखलाया
सोचा न समझा बेहिसाब डांटा
उठा दिया हाथ मारा एक चांटा
तुम्हें अच्छा खासा जेब खर्च मिलता है
उसमें भी काम नहीं चलता है
मैं अनाप सनाप बोलकर उसे डपट रहा था
उसकी आँखों से अविरल नीर टपक रहा था
वह फूट फूट कर रोया और सुबकते हुए बोला
पापा आप जो जेबखर्च देते हैं,
सारे पैसे मैंने बचाए हैं
फिर भी मुझसे अबतक,
आठ सौ रुपये ही जमा हो पाए हैं
आप से दो सौ इसलिए मांग रहा हूँ
कि हजार पूरे करके
आपका एक दिन खरीदना चाह रहा हूँ
उस दिन आपको रखूँगा मैं अपने पास
काम पर जाने की मत करना बात
आपकी गोद मैं बैठकर खूब मस्ती करूँगा
और रात को प्यारी सी लोरी सुनूंगा
मैं अवाक् और अपलक उसे निहार रहा था
फिर बाँहों मैं भरकर पुचकार रहा था
मन ही मन खुद को दुत्कार रहा था