आतंकवाद पर कविता

Shabd Sarovar Hindi Kavita
लांस नायक हेमराज और सुधाकर सिंह


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माँ भारती के अमर सपूतों शहीद लांस नायक हेमराज
और सुधाकर सिंह को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि

सरहद पार करी छुप के कोहरे का लाभ उठाया है।
घात लगाकर दो फौजी वीरों को मार गिराया है॥
क्षत-विक्षित कर दिए जिस्म निर्दयी, क्रूर, हैवान बना।
शीश काटकर हेमराज का तेरे घर में जश्न मना॥
युद्ध-विराम का उल्लंघन कर अनुबंधों को तोड़ा है।
बात सुलह की करते-करते तोपों का मुंह खोला है॥
साक्ष्य रख दिए सम्मुख तू आतंकवाद को पाल रहा।
उल्टा दोष हमें देकर उसपर पर भी पर्दा डाल रहा॥

जियो और जीने दो वाले पथ के हम अनुगामी हैं।
लेकिन छल करने की तेरी आदत वही पुरानी है॥
जब-जब तूने आँख तरेरीं तब-तब मुँह की खाई है।
फिर भी ओ-बेशर्म ठिकाने तेरी अक्ल नहीं आई है॥
पानी सर से उतर गया अब मांफी तुझे नहीं होगी।
इन न्रशंस हत्याओं की भरपूर सजा तुझको होगी॥

वीर "सुधाकर", "हेमराज" का हमसब कर्ज चुकायेंगे।
वापस दे दे शीश नहीं तो फिर से सबक सिखायेंगे॥
हेमराज और वीर सुधाकर को कोई भुला न पायेगा।
भारत माँ का कण-कण इन वीरों की गाथा गायेगा॥

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कविता सुनें : Watch the Poem मैं और मेरी जया दोनों खुशहाल एक था हमारा नटखट गोपाल चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल जान से प्यारा हमें अपना लाल तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत मैं उसको वांछित समय न दे पाता मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ लेशमात्र होती थीं आपस में बात एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब तो सवाल पर सवाल किया पापा एक बात बताएँगे आप सुबह जाते हो रात को आते हो बताओ एक दिन में कितना कमाते हो ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया खुद को असमंजस के घेरे में पाया मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो आप एक दिन में कितना कमाते हो मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ वह नहीं माना, मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला जल्दी बताओ जल्दी बताओ मैंने झिड़क दिया यह कहकर बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ देखकर मेरे तेवर, उसका अदना सा मन सहम गया मुझ

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