विदाई कविता

शब्द सरोवर कविताऍं
Dr. Amitava Sen Gupta


कविताएं सुनें : Watch the poetry


नाम बड़ा विज्ञान जगत में जिनका खास मुकाम,
सेवानिवृति कहने को इन्हें उठती नहीं जुबान,
लवों पर शब्द न आऐं विदाई कैसे गाऐं॥

सभी जानते इनके मन में भेदभाव नहीं पलता।
पीए ना रोकें तो इनसे हर कोई मिल सकता।
संयम और सहजता से सुनते हैं सबकी बात
और अपनत्व दिखाऐं तभी सब इनको चाहें॥

यही चाह थी नया निदेशक एनपीएल से आए।
देख लिए बाहर वाले कोई अपना इसे चलाए।
इच्छा पूरी हुई मिला जब आपको यह सम्मान
कहें कुछ ना कह पाऐं मगर मन में हर्षायें॥

थोड़े दिन को बना निदेशक हमें बनाया उल्लू।
ये तो वही कपिल वाला है बाबाजी का ठुल्लू।
पांच साल केजरीवाल तो इनको भी कुछ साल
मिलें तो कुछ कर पाऐं प्रगति पथ पर ले जायें॥

करें प्रभु से विनती इनका कार्यकाल बढ़ जाए।
कुशल नेतृत्व मिले एनपीएल आगे कदम बढ़ाए।
चाहे जिससे पूछो सबका होगा यही जबाब
कहो तो हाथ उठायें समर्थन मिले दिखाएं॥

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कविता सुनें : Watch the Poem मैं और मेरी जया दोनों खुशहाल एक था हमारा नटखट गोपाल चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल जान से प्यारा हमें अपना लाल तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत मैं उसको वांछित समय न दे पाता मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ लेशमात्र होती थीं आपस में बात एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब तो सवाल पर सवाल किया पापा एक बात बताएँगे आप सुबह जाते हो रात को आते हो बताओ एक दिन में कितना कमाते हो ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया खुद को असमंजस के घेरे में पाया मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो आप एक दिन में कितना कमाते हो मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ वह नहीं माना, मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला जल्दी बताओ जल्दी बताओ मैंने झिड़क दिया यह कहकर बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ देखकर मेरे तेवर, उसका अदना सा मन सहम गया मुझ

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