संस्कार पर कविता
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कोई इस राह चलता है कोई उस राह चलता है।
नेक नीयत किसी की और कोई नीयत बदलता है।
पले कोई संस्कारों में कोई संस्कार ना जाने।
इसलिए आदमी कोई कोई इंसान बनता है॥
चालबाजी नहीं आती दगाबाजी नहीं आती।
बात कह दे पलट जाए कलाबाजी नहीं आती।
आज के दौर की जिसको कोई बाजी नहीं आती।
अकेला ही चले उसको नहीं अब साथ मिलता है॥
समय के साथ कहते हैं नहीं मानक बदलते हैं।
कसौटी एक ही रहती नमूने ही बदलते हैं।
परख की आदमी की तो नतीजा सामने आया।
खरा मिलता है कम इंसान अब खोटा निकलता है॥