प्रेम कविता : प्यार की घंटी

Shabd Sarovar Poems


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उनकी नजरों से जब मेरी नजरें मिली।
दिल में बजने लगीं घंटियाँ प्यार की।।

कतरा-कतरा लहू गुनगुनाने लगा।
साँस-सरगम बनी उनसे मनुहार की॥

ओट-घूंघट से उनकी छलकती नजर।
नैंन-दर्पण में जब मेरे आने लगी।
धीरे-धीरे दुपट्टा सरकने लगा।
और प्रतिबिम्ब उनका बनाने लगी।
फिर हटाने लगीं वो लटें गाल से।
और परोसी मुझे रूप-ज्यौनार सी॥

मेरी रग-रग में संगीत सजने लगा।
घड़कनें राग-चाहत बजाने लगीं।
और जिगर में बजी प्रेम की बाँसुरी।
गीत उनको मिलन के सुनाने लगी।
मन मयूरा हुआ नाचने लग पड़ा।
जिस्म में इश्क-वीणा की झनकार सी॥

बनके मूरत वो मेरे हृदय में बसीं।
रूह करने लगी उनकी आराधना।
प्यार की एक गजल अंकुरित हो गई।
कंठ करने लगा उसकी सुर साधना।
मुद्दतों से अधूरी कोई कल्पना।
देख उनको हुई आज साकार सी॥

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कविता सुनें : Watch the Poem मैं और मेरी जया दोनों खुशहाल एक था हमारा नटखट गोपाल चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल जान से प्यारा हमें अपना लाल तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत मैं उसको वांछित समय न दे पाता मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ लेशमात्र होती थीं आपस में बात एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब तो सवाल पर सवाल किया पापा एक बात बताएँगे आप सुबह जाते हो रात को आते हो बताओ एक दिन में कितना कमाते हो ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया खुद को असमंजस के घेरे में पाया मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो आप एक दिन में कितना कमाते हो मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ वह नहीं माना, मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला जल्दी बताओ जल्दी बताओ मैंने झिड़क दिया यह कहकर बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ देखकर मेरे तेवर, उसका अदना सा मन सहम गया मुझ

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