प्रेम कविता : प्यार की घंटी
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उनकी नजरों से जब मेरी नजरें मिली।
दिल में बजने लगीं घंटियाँ प्यार की।।
कतरा-कतरा लहू गुनगुनाने लगा।
साँस-सरगम बनी उनसे मनुहार की॥
ओट-घूंघट से उनकी छलकती नजर।
नैंन-दर्पण में जब मेरे आने लगी।
धीरे-धीरे दुपट्टा सरकने लगा।
और प्रतिबिम्ब उनका बनाने लगी।
फिर हटाने लगीं वो लटें गाल से।
और परोसी मुझे रूप-ज्यौनार सी॥
मेरी रग-रग में संगीत सजने लगा।
घड़कनें राग-चाहत बजाने लगीं।
और जिगर में बजी प्रेम की बाँसुरी।
गीत उनको मिलन के सुनाने लगी।
मन मयूरा हुआ नाचने लग पड़ा।
जिस्म में इश्क-वीणा की झनकार सी॥
बनके मूरत वो मेरे हृदय में बसीं।
रूह करने लगी उनकी आराधना।
प्यार की एक गजल अंकुरित हो गई।
कंठ करने लगा उसकी सुर साधना।
मुद्दतों से अधूरी कोई कल्पना।
देख उनको हुई आज साकार सी॥