राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला

शब्द सरोवर हिंदी कविता पाठ
National Physical Laboratory New Delhi


कविता सुनें : Watch the Poem


परंपरा विज्ञान यहाँ की झलक मात्र दिखलाते हैं।
राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला से परिचय करवाते हैं॥

चार जनवरी सन् सेंतालीस को अस्तित्व बनाया था।
पहला पत्थर नेहरू जी ने अपने हाथ लगाया था।
तीन साल तक संरचना संबंधी काम कराया था।
तब पटेल जी के हाथों से उदघाटन हो पाया था।
सन् पचास इक्कीस जनवरी का दिन उसे बताते हैं॥

के एस कृष्णन प्रथम निदेशक बने प्रणेता कहलाए।
किचलू, वर्मा, मित्रा साहब क्रमशः आगे पद पाए।
जोशी, राजगोपाल, राय चौधरी बाद उनके आए।
कृष्ण लाल, विक्रम कुमार, बुधानी यहाँ तलक लाए।
दिनेश कुमार असवाल आजकल यहाँ पै ध्वज फहराते हैं॥

मापविधा में भारत का यही शिखर संस्थान है।
मापन और मानकों संबंधी होता हर काम है।
उच्च स्तरीय शोधकार्य को भी देते अंजाम है।
नए पदार्थ और तकनीकें विकसित होना यहाँ आम है।
देश के भावी वैज्ञानिक भी यहाँ तराशे जाते हैं॥

यहीं बनी थी वो स्याही जिसने आयाम बनाए थे।
लगी उसी की उंगली पर जो वोट डाल कर आए थे।
फर्जी वोटों को चुनाव में रोक इसी से पाए थे।
था निशान जिसके दोबारा वोट डाल नहीं पाए थे।
हर चुनाव में इसीलिए उस स्याही को अपनाते हैं॥

फैराइट कोर भी यहाँ बनाई जिसने अद्भुत काम किया।
बड़े रेडियो ट्रांजिस्टर को छोटा सा आकार दिया।
सोलर सैल पर सबसे पहले काम देश में यहीं किया।
खोज संग उत्पादन के हित यहीं सैल ने जन्म लिया।
संस्था बनकर खड़ा सैल अब गौरव से कह पाते हैं॥

हल्की-फुल्की रिंग कार्बन से भी यहाँ बनाई है।
पोलियो पीड़ित बच्चों को भी जो चलना सिखलाई है।
अग्नि मिसाइल ने सेना की मारक शक्ति बढ़ाई है।
यहीं पै विकसित पदार्थ से अग्नि की नोंक बनाई है।
अति घर्षण और उच्च ताप भी जिसे न पिघला पाते हैं।।

ग्लोबल वार्मिंग ओजोन लेयर पर भी हमने ध्यान दिया।
वायुमंडलीय प्रदूषणों और ग्रीन हाउस पर काम दिया।
आयन मंडल और रेडियो तरंगों को भी जान लिया।
मित्रा साहब के कामों ने एनपीएल का नाम किया।
स्रौस सेटेलाइट के कुछ पेलोड भी यहाँ बनाते हैं॥

अंटार्कटिका के अभियानों से मूल रूप में जुड़े रहे।
अभियानों के मुखिया भी वैज्ञानिक अपने चुने गए।
विषम परिस्थितियों में जो कर्तव्य मार्ग पर जुटे रहे।
खोज करीं अंटार्कटिका पर महीनों सालों वहीं रहे।
छः महीने का दिन होता जहाँ छः की रात बताते हैं॥

देसी फोटोकापी मशीन का भी अविष्कार किया।
अतिचालकता को भारत में हमने ही विस्तार दिया।
वैज्ञानिक सोचें जन्मी यहाँ पलीं बढ़ी आकार लिया।
लौह पुरुष और पंडित जी के सपनों को साकार किया।
परंपरा अक्षुण्ण रहे कह यहीं विराम लगाते हैं॥

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कविता सुनें : Watch the Poem मैं और मेरी जया दोनों खुशहाल एक था हमारा नटखट गोपाल चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल जान से प्यारा हमें अपना लाल तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत मैं उसको वांछित समय न दे पाता मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ लेशमात्र होती थीं आपस में बात एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब तो सवाल पर सवाल किया पापा एक बात बताएँगे आप सुबह जाते हो रात को आते हो बताओ एक दिन में कितना कमाते हो ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया खुद को असमंजस के घेरे में पाया मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो आप एक दिन में कितना कमाते हो मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ वह नहीं माना, मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला जल्दी बताओ जल्दी बताओ मैंने झिड़क दिया यह कहकर बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ देखकर मेरे तेवर, उसका अदना सा मन सहम गया मुझ

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