महंगाई पर कविता

Kavitayen

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कोढ़ बनी अब महॅगाई और दाद मिटे ना खाज।
छोंक लगे जीरे का जबसे सौ पर पहुँची प्याज,
बजट की डूबी नैया रोज गिर जाइ रूपइया॥

बिजली शॉक लगाए पानी बढ़ता जाए।
इनको देख सिलेंडर अपना भाव बढ़ाए।
पेट्रोल और डीजल को तो कोई पकड़ न पाए,
लगे जैसे इनके पहिया या पीछे पड़े ततैया॥

दूध-दही की नदियाँ बातें हुई पुरानी।
अब तो मिले यूरिया कैमीकल का पानी।
असली कहाँ मिलेगा जब है नक्कालों का राज,
बनाकर झूठी गैया बिठा दिए कृष्ण कन्हैया॥

चीकू बेर संतरा या आलूबुखारा।
केला और पपीता चढ़ा सभी का पारा।
आम हुआ केजरीवाल का सेब सभी का बाप,
बचे अमरूद ही भैया न जिनका कोई खबैया॥

आलू आँख दिखाता बेंगन बात बनाए।
अदरक करे अनादर नींबू नाँच नचाए।
गुस्से में हो रहे टमाटर पीला कोई लाल,
बजट में देख तुरैया तुलाई एक अढैया॥

आटा चावल चीनी सबने खूब सताया।
दालों की सुनते ही मुझे पसीना आया।
पंसारी के पास गया तो छींक-छींक बेहाल,
नाक से गिरे मलैया लौट लिया घर को भैया॥

बजन आज थैले में श्रीमती मुस्काई।
देख तोरई भड़की बनी कालका माई।
पहले तोरई बाण चले फिर नए-नए हथियार,
चीमटा और कढैया पतीली थाली भैया॥

पडूँ मैं उसके पैंया बख्स दे बीबी-मैया॥
कभी ना लाऊँ तुरैया कभी ना लाऊँ तुरैया॥

गुस्सा हवा हुआ तो बही प्यार की धारा।
बोलीं माँफी दे दो महॅंगाई ने मारा।
खाली देख रसोई मेरा धीरज टूटा आज,
चले कैसे घर की नैया कहे मेरी सोन-चिरैया॥