माँ पर कविता

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माँ की ममता का सभी करते खूब बखान।
माँ जैसा कोई नहीं कहता सकल जहान॥
कहता सकल जहान दूर जिससे हो जाती।
बेटा हो या बेटी माँ की महिमा गाती॥
होती है जब पास उसे कोई घास न डाले।
छोड़ अकेला चलें उसी को जिसने पाले॥

स्वार्थ-सिद्धि अपनी करें फिर क्यों पश्चाताप।
माँ है अगर महान तो सुख-दुःख में हों साथ॥
सुख-दुःख में हों साथ बहाने नहीं बनाऐं।
मजबूरी और लाचारी के गीत न गाऐं॥
जैसे माँ निःस्वार्थ लुटाती अपनी ममता।
माँ की ढाल बनें जब आए उस पर विपदा॥