कविता सुनें
Watch the Poem
ना शब्दों की खान, मुझे ना अर्थों की पहचान,
छंदों और विधाओं का भी, मुझे न सच्चा ज्ञान॥
शैली नहीं अनूठी, और ना भाषा चमत्कारी,
फिर भी कलम हाथ में पकड़ी, लगी बुरी बीमारी॥
सीधे सच्चे बोल, जिन्हें मन पट्टी पर लिख लेता,
जो चाहे दो नाम, उसी को मैं कविता कह देता॥