हिंदी भाषा पर कविता

शब्द सरोवर हिंदी कविता



कविताएं सुनें : Watch my Poetry


अलख जगाता हूँ हिंदी का सुनो सभी नर-नार।
अपनी भाषा को अपनाओ करता समय पुकार।
जागृति शंख बजाओ हिंद में हिंदी लाओ॥

पापा-डैडी में प्यार कहाँ जब आप पिताजी बोलें।
तब अंतर्मन के भावों में मिश्री-सा रस घोलें।
माँ जैसी ममता न मिलेगी मॉम कहो सौ बार।
जिसे तुम शीश झुकाओ गोद भी उसकी पाओ॥

यह राम-कृष्ण की भाषा इसमें गौतम संदेश हैं।
पग-पग पर भाईचारे का देते हमको उपदेश है।
कहते आदर्शों पर चलना है सच्चा सतमार्ग।
इसी को तुम अपनाओ सतमार्गी बन जाओ॥

मानव के शु़द्ध विचारों की खान हमारी हिंदी।
हम सच्चे हिंदुस्तानी आभास कराती हिंदी।
रही जोड़ती परिवारों को देखे जहाँ दरार।
आपसी प्रेम बढ़ाओ त्याग जीवन में लाओ॥

स्वर और व्यंजन से शोभित है वर्णमाल हिंदी की।
यदि इसे पिरो दें धागे में माला बनती हिंदी की।
छंद-समास और अलंकार से करती यह श्रृंगार।
लबों पर इसे सजाओ रसों में गोते खाओ॥

हिंदी है स्वर्ण हिंडोला इस पर सवार हो जाओ।
और इसके हर झोटे पर तुम राग-मल्हारें गाओ।
हिंदी से ही हिंद देश का होगा बेडा पार।
सम्मिलित स्वर में गाओ नहीं खुद से शर्माओ॥

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कविता सुनें : Watch the Poem मैं और मेरी जया दोनों खुशहाल एक था हमारा नटखट गोपाल चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल जान से प्यारा हमें अपना लाल तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत मैं उसको वांछित समय न दे पाता मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ लेशमात्र होती थीं आपस में बात एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब तो सवाल पर सवाल किया पापा एक बात बताएँगे आप सुबह जाते हो रात को आते हो बताओ एक दिन में कितना कमाते हो ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया खुद को असमंजस के घेरे में पाया मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो आप एक दिन में कितना कमाते हो मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ वह नहीं माना, मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला जल्दी बताओ जल्दी बताओ मैंने झिड़क दिया यह कहकर बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ देखकर मेरे तेवर, उसका अदना सा मन सहम गया मुझ

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