भौतिकवाद पर कविता कविता सुनेंWatch the Poem भौतिकवाद आज की सुरसा,बढ़ता जाए रोज बदन॥ इंसानियत डकार गई और,लोक-लाज का किया हनन॥ परंपरा संस्कार सभ्यता,का दिन रोज करे भक्षण॥ राम नही ना बजरंगी अब,बचना है तो करो जतन॥