भौतिकवाद पर कविता


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Hindi Poetry

भौतिकवाद आज की सुरसा,
बढ़ता जाए रोज बदन॥

इंसानियत डकार गई और,
लोक-लाज का किया हनन॥

परंपरा संस्कार सभ्यता,
का दिन रोज करे भक्षण॥

राम नही ना बजरंगी अब,
बचना है तो करो जतन॥