अहंकार पर कविता

>Hindi Kavitaen
कविताएं सुनें : Watch my Poetry


अहंकार ना रहे किसी का समय-संग मिट जाता।
खुद चलती है दुनियाँ इसको कोई नहीं चलाता॥

आग बरसती आसमान से जून महीना आया,
भीषण गर्मी और धूप ने कुत्ते को झुलसाया,
देखा उसने पास तभी बैलों की गाड़ी आई,
छाँव देख कुत्ते ने अपनी शरणस्थली बनाई,
गाड़ी नीचे चले धूप से अपना बदन बचाता॥

राहत मिली ताप से कुत्ता मन ही मन हर्षाया,
चलते-चलते अहंकार ने आकर उसे दबाया,
बैलों से बोला ऐसे तुम करो नहीं कुछ काम,
मैं गाड़ी को खींच रहा हूँ तुम हो नमकहराम,
मेरी ताकत लगती मै ही आगे इसे बढ़ाता॥

निकल जाऊं गर नीचे से तो गाड़ी यहीं रूकेगी,
मेरे बिन यह एक कदम भी आगे नहीं बढ़ेगी,
कुत्ते की जब बात सुनी तो एक बैल मुस्काया,
एक ने मारी लात जोर से उसको गुस्सा आया,
गिरा धूप में जाकर कुत्ता पड़ा-पडा़ डकराता॥

फिर से गर्मी लगी धूप ने फिर से बदन जलाया,
गाड़ी आगे निकल गई वो वहीं पड़ा पछताया,
सीख मिली कुत्ते को अच्छी माना अपनी गलती,
कोई नहीं चलाता दुनियाँ अपने दम से चलती,
अहंकार मत करना कोई बार-बार दुहराता॥