पिताजी पर कविता


शब्द सरोवर हिंदी कविताएं
श्रद्धेय श्री रमन लाल जी


कविताएं सुनें : Watch my Poetry


मुँह से ना निकले बैन,
और बंद कर लिए नैन,
तात क्यों मुझसे रूठे,
गगन में तारे टूटे॥

चलना मुझको सिखलाया,
पद्दी पर खूब घुमाया,
काँटा कोई चुभा उठाया,
गोदी में लाढ़ लढ़ाया,
अब शूल जिगर के पार,
सहला दो फिर एक बार,
फफोले बन-बन फूटे॥

पग-पग पर दिया सहारा,
हिम्मत दी जब-जब हारा,
अब नाव बीच जलधारा,
दिखला दो इसे किनारा,
मेरी टूटी जाए आस,
डगमगा रहा विश्वास,
हाथ से चप्पू छूटे॥

अब इतना नहीं सताओ,
कुछ बोलो वचन सुनाओ,
मैं छू लूँ पैर बढ़ाओ,
आशीष दो कवच चढ़ाओ,
मेरे सिर पर रख दो हाथ,
दे दो सच्ची सौगात,
जमाना जिसे न लूटे॥

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कविता सुनें : Watch the Poem मैं और मेरी जया दोनों खुशहाल एक था हमारा नटखट गोपाल चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल जान से प्यारा हमें अपना लाल तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत मैं उसको वांछित समय न दे पाता मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ लेशमात्र होती थीं आपस में बात एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब तो सवाल पर सवाल किया पापा एक बात बताएँगे आप सुबह जाते हो रात को आते हो बताओ एक दिन में कितना कमाते हो ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया खुद को असमंजस के घेरे में पाया मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो आप एक दिन में कितना कमाते हो मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ वह नहीं माना, मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला जल्दी बताओ जल्दी बताओ मैंने झिड़क दिया यह कहकर बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ देखकर मेरे तेवर, उसका अदना सा मन सहम गया मुझ

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