पिताजी पर कविता
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मुँह से ना निकले बैन,
और बंद कर लिए नैन,
तात क्यों मुझसे रूठे,
गगन में तारे टूटे॥
चलना मुझको सिखलाया,
पद्दी पर खूब घुमाया,
काँटा कोई चुभा उठाया,
गोदी में लाढ़ लढ़ाया,
अब शूल जिगर के पार,
सहला दो फिर एक बार,
फफोले बन-बन फूटे॥
पग-पग पर दिया सहारा,
हिम्मत दी जब-जब हारा,
अब नाव बीच जलधारा,
दिखला दो इसे किनारा,
मेरी टूटी जाए आस,
डगमगा रहा विश्वास,
हाथ से चप्पू छूटे॥
अब इतना नहीं सताओ,
कुछ बोलो वचन सुनाओ,
मैं छू लूँ पैर बढ़ाओ,
आशीष दो कवच चढ़ाओ,
मेरे सिर पर रख दो हाथ,
दे दो सच्ची सौगात,
जमाना जिसे न लूटे॥